check bounce Big News: आधुनिक वित्तीय लेनदेन में चेक का उपयोग काफी आम हो गया है, परंतु अनेक लोग इससे जुड़े कानूनी नियमों से अनभिज्ञ हैं। हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने चेक बाउंस के एक मामले में अहम फैसला सुनाया है, जिसने स्पष्ट कर दिया है कि चेक बाउंस होने पर अब संबंधित व्यक्ति को कड़े परिणाम भुगतने होंगे। आइए जानते हैं इस महत्वपूर्ण फैसले के बारे में विस्तार से।
चेक बाउंस
चेक बाउंस होना कानूनी रूप से एक गंभीर अपराध माना जाता है। नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति का चेक अपर्याप्त धनराशि के कारण बाउंस होता है, तो चेक जारी करने वाले व्यक्ति को दो साल तक की कैद और चेक की राशि से दोगुनी तक जुर्माने की सजा हो सकती है। इसलिए चेक जारी करने से पहले यह सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है कि आपके बैंक खाते में पर्याप्त धनराशि मौजूद हो।
हाई कोर्ट का ताजा फैसला
दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में चेक बाउंस के एक मामले में निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि नोटिस मिलने के बावजूद चेक की राशि का भुगतान नहीं किया जाता है, तो संबंधित व्यक्ति पर आपराधिक मुकदमा चलाया जाएगा।
इस मामले में, एक व्यक्ति ने मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द करने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया और कहा कि चेक बाउंस के मामलों में कानून सख्ती से लागू किया जाएगा।
मामले की पूरी कहानी
पूरा मामला एक ऐसे व्यक्ति से संबंधित है, जिसका नाम संजय है। संजय ने कोटक महिंद्रा बैंक से एक माह के लिए 4 लाख 80 हजार रुपये का लोन लिया था। इस राशि के भुगतान के लिए उसने बैंक को चेक दिया था। जब यह चेक बैंक में जमा कराया गया, तो अपर्याप्त धनराशि के कारण बाउंस हो गया।
बैंक ने नियमानुसार संजय को 15 दिन का नोटिस भेजा, जिसमें उसे राशि का भुगतान करने के लिए कहा गया था। हालांकि, नोटिस के बावजूद संजय ने राशि का भुगतान नहीं किया, जिसके बाद बैंक ने उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की।
निचली अदालत का फैसला
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने संजय को दोषी पाया और उसे तीन महीने की सजा के साथ सात लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। यह राशि शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में दी जानी थी। न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि यदि चार महीने के भीतर राशि का भुगतान नहीं किया गया, तो संजय को तीन महीने की अतिरिक्त सजा भी भुगतनी होगी।
संजय ने इस फैसले को चुनौती देते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के समक्ष अपील की, लेकिन 2021 में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने भी मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के फैसले को सही ठहराया। इसके बाद संजय ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ता के दावे और हाई कोर्ट का निष्कर्ष
हाई कोर्ट में दायर अपनी याचिका में संजय ने दावा किया कि उससे संबंधित चेक गुम हो गया था और इस बारे में उसने शिकायत भी दर्ज कराई थी। हालांकि, हाई कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता के पास चेक गुम होने की शिकायत दर्ज कराने का कोई प्रमाण या रिकॉर्ड नहीं था। इसके अलावा, उसने बैंक में चेक के भुगतान को रोकने के लिए भी कोई कदम नहीं उठाया था।
इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए याचिका को खारिज कर दिया और निर्देश दिया कि चेक बाउंस के मामलों में कानून का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।
चेक बाउंस से बचने के लिए सावधानियां
चेक बाउंस होने से बचने के लिए, निम्नलिखित सावधानियां बरतना आवश्यक है:
1.चेक जारी करने से पहले सुनिश्चित करें कि आपके बैंक खाते में पर्याप्त धनराशि मौजूद है।
2.यदि किसी कारण से आप चेक की राशि का भुगतान नहीं कर सकते हैं, तो तुरंत चेक प्राप्तकर्ता को सूचित करें और भुगतान के वैकल्पिक तरीके पर चर्चा करें।
3.यदि आपका चेक गुम हो जाता है, तो तुरंत बैंक को सूचित करें और भुगतान रोकने का अनुरोध करें।
4.नोटिस मिलने पर तुरंत प्रतिक्रिया दें और राशि का भुगतान करें। नोटिस की अवहेलना करने से स्थिति और गंभीर हो सकती है।
चेक बाउंस के कानूनी परिणाम
चेक बाउंस होने पर निम्नलिखित कानूनी परिणाम हो सकते हैं:
1.चेक की राशि के अलावा भारी जुर्माना देना पड़ सकता है, जो चेक राशि के दोगुने तक हो सकता है।
2.दो साल तक की कैद की सजा हो सकती है।
3.क्रेडिट स्कोर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जिससे भविष्य में लोन प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है।
4.समाज में प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंच सकता है।
दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला स्पष्ट संदेश देता है कि चेक बाउंस एक गंभीर अपराध है और इसके परिणाम भी गंभीर हो सकते हैं। इसलिए हर व्यक्ति को चेक जारी करते समय पूरी सावधानी बरतनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके बैंक खाते में पर्याप्त धनराशि मौजूद है।
यह फैसला वित्तीय अनुशासन और ईमानदारी को बढ़ावा देने में मदद करेगा और लोगों को चेक जारी करते समय अधिक जिम्मेदार बनने के लिए प्रेरित करेगा।
यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। किसी भी कानूनी मामले के लिए, कृपया योग्य वकील से परामर्श करें। लेख में दी गई जानकारी लेखक की समझ के अनुसार है और इसमें परिवर्तन संभव है क्योंकि कानून और उनकी व्याख्या समय के साथ बदल सकती है।